Tuesday, December 24, 2024

आत्मा - अजन्मा अविनाशी शाश्वत सर्वव्यापी

 आत्मा - अजन्मा अविनाशी शाश्वत सर्वव्यापी 


आत्मा न तो मरता है और न ही मारा जाता है। आत्मा का न तो किसी काल में जन्म होता है और न ही मृत्यु। वह न तो कभी जन्मता है। आत्मा अजन्मा, सदैव रहने वाला, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर आत्मा नहीं मारा जाता। जो व्यक्ति जानता है कि आत्मा अविनाशी, अजन्मा, शाश्वत और कभी ना खर्च होने वाला है, वह किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है। जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र पहनता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने और बेकार शरीर को त्यागकर नया भौतिक शरीर धारण करता है। आत्मा किसी शस्त्र द्वारा खंडित नहीं किया जा सकता, न ही अग्नि द्वारा जलाया जा सकता, न ही जल द्वारा गीला किया जा सकता या नहीं वायु द्वारा सुखाया जा सकता। आत्मा अखंडित और अघुलनशील है। यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर और सदा एक सा रहने वाला है। यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय है। 


ॐ तत् सत्। 


सादर, 

केशव राम सिंघल  



ॐ प्रार्थना

 ॐ प्रार्थना 


ओङ्कार (ओंकार) बिंदू संयुक्तं 

निव्य ध्यायन्ति योगिनः 

कामदं मोक्षंद चैव 

ओङ्काराय नमो नमः !


भावार्थ - योगीजन अनुस्वार से युक्त ओङ्कार का सदा ध्यान करते हैं। यह ओङ्कार सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला और मोक्षदाता है। हम सभी ओङ्कार के प्रति आदरपूर्वक नमस्कार करते हैं।   


ॐ तत् सत्। 


सादर, 

केशव राम सिंघल