*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*
*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*
8/16
*आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोअर्जुन !*
*मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते !!*
*भावार्थ*
श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं -
हे अर्जुन ! ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावर्तीवाले हैं (अर्थात् जहाँ जाकर संसार में लौटना पड़ता है), परन्तु हे कौन्तेय (अर्जुन) ! मुझे (परमात्मा को) प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता.
*प्रसंगवश*
पृथ्वी से लेकर ब्रह्मलोक तक का सुख सीमित, परिवर्तनशील और विनाशी है, लेकिन भगवान को पाने का सुख अनंत, अपार, अगाध है. यह सुख अविनाशी है, कभी नष्ट नहीं होने वाला है. अनंत ब्रह्मा और अनंत ब्रह्माण्ड के समाप्त होने पर भी यह सुख समाप्त नहीं होता. मृत्युलोक (यह पृथ्वी), देवलोक और ब्रह्मलोक जाने वाले को जन्म-मरण के बंधन में रहना होता है, लेकिन जिसने परमात्मा (भगवान) को प्राप्त कर लिया, वह इस बंधन से मुक्त हो जाता है.
दो प्रकार के व्यक्ति ब्रह्मलोक जाते हैं. पहला, सुख भोग के लिए ब्रह्मलोक जाते हैं और लौटकर संसार में आते हैं और दूसरे, क्रम मुक्तिवाले ब्रह्मलोक जाते हैं और ब्रह्माजी के साथ मुक्त हो जाते हैं. ब्रह्मलोक में भी कोई सदा नहीं रह सकता. ब्रह्मलोक तक सब कर्मफल है.
सादर,
केशव राम सिंघल