Thursday, February 15, 2018

*#067 - गीता अध्ययन एक प्रयास*


*#067 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*

*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 6 - ध्यानयोग - श्लोक 37 से 39*


6/37
*अर्जुन उवाच*
*अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः !*
*अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति !!*


6/38
*कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति !*
*अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि !!*


6/39
*एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः !*
*त्वदन्य संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते !!*


*भावार्थ*

अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं -
हे कृष्ण ! जिस व्यक्ति की साधन में श्रद्धा है, पर जिसका प्रयत्न शिथिल है और जो योग से विचलित हो जाए तो उस व्यक्ति की गति क्या होगी जो योगसिद्धि प्राप्त नहीं कर पाता. (6/37) हे महाबाहो (श्रीकृष्ण) ! संसार के आश्रय से रहित (अर्थात् जिसने संसार के सुख-आराम, आदर-सत्कार, यश-प्रतिष्ठा आदि कामना छोड़ दी हो) और परमात्मप्राप्ति के मार्ग में मोहित (विचलित) होने वाला ऐसा व्यक्ति जो दोनों (सांसारिक और पारमार्थिक) ओर से भ्रष्ट हो गया हो, क्या वह छिन्न-भिन्न बदल की तरह नष्ट तो नहीं हो जाता? (6/38) हे कृष्ण ! मेरे इस संदेह का पूरी तरह निराकरण करने के लिए आप ही योग्य हैं क्योंकि इस प्रकार के संशय (संदेह) का निराकरण करने वाला आपके सिवाय दूसरा कोई हो नहीं सकता. (6/39)

सादर,

केशव राम सिंघल



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