पिछले दिनों मैं एक पत्रिका पढ़ रहा था, जिसमें एक बुजुर्ग पाठक ने अपंनी व्यथा के साथ एक सोच सामने रखी - "मैं 83 साल का बूढ़ा सरकार से पेंशन लेने वाला व्यक्ति हूँ ! मेरा अब नए साल से क्या मतलब रह गया है?परिवार में सब अपनी चलाते हैं. सबकी निगाहें मेरी पेंशन पर है. इन सबके बाद भी मैं नए साल को नए ढंग से देखता हूँ. नए साल में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलनी चाहिये, वरना देश गर्त में चला जायेगा." यह व्यथा हजारों-लाखों वरिष्ठ नागरिकों की व्यथा है.
विश्वं के सभी धर्मो और संप्रदायों में माता-पिता को बहुत ही उच्च सम्मान और दर्जा दिया गया है और भगवान की तुलना हमारे यहाँ तो माता-पिता से की गयी है, तभी तो श्लोक है - "त्वमेव माता च पिता त्वमेव". अर्थात, हे भगवान ! आप ही मेरे माता और पिता हो. इतना सम्मानजनक स्थान होने के बावजूद भी बुजुर्ग माता-पिता को दु:ख भोगना पढ़ता है, उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है.
ऐसे भी बहुत से मामले हैं जिनमें वरिष्ठ नागरिकों का उनके बेटे-बेटी ध्यान नहीं रखते और अकसर इस ओर एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने का प्रयास करते हैं. इस सन्दर्भ में राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला बहुत ही महत्वपूर्ण है. 10 जनवरी 2011 को राजस्थान हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक बुजुर्ग पिता की देखभाल सभी बेटे-बेटियों को बराबर की सौपी. तीनों बेटों और पाँचो विवाहित बेटियों को पिता के भरण-पोषण व इलाज के अलावा पाँच-पाँच सौ रुपये मासिक देने का निर्देश दिया. निश्चित रूप से राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला असहाय वरिष्ठ नागरिकों के हित में है और समाज में एक अहम् बदलाव लाने का संकेत भी है.
जेलों में बंद बुजुर्ग कैदी
जेलों में बंद बुजुर्ग कैदियों की संख्या जेल-प्रशासन और कैदियों दोनों को भारी पड़ रही है. क्षमता से अधिक कैदियों की मौजूदगी से जैलेन प्रभावित हो रहीं हैं और बुजुर्ग कैदी महज इसलिए सलाखों के पीछे दिन कैट रहे हैं क्योंकि इनको छोड़ने में कभी सरकारी नियम-कायदे आड़े आते हैं तो कभी इन कैदियों के परिजनों की उपेक्षा. कई मामलों में तो बुजुर्ग कैदी सजा पुरी होने के बाद भी बंद हैं क्योंकि नियमानुसार वे जमानतदार की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं. बुजुर्ग कैदियों को आए दिन कोई न कोई बीमारी घेरे रहती है और ऐसे में जेल अस्पताल में इनका इलाज होता है. अनेक कठिनाईयों का बुजुर्ग कैदियों और जेल अधिकारियों को सामना करना पड़ता है. नियमों के तहत आजीवन सजा काट रहे किसी कैदी को जेल में चौदह साल हो चुके हों तो उसे छोड़ा जां सकता है, लेकिन न तो सरकार और न ही जेल प्रशासन इस ओर दिलचस्पी लेता है. जेलों में बंद ऐसे हजारों कैदी हैं जो बिना सहारे चल तक नहीं सकते. नियमों के मुताबिक रिहाई के हक़दार ऐसे कैदी प्रशासनिक और सरकारी उपेक्षा के चलते जेलों में बंद हैं.
बुजुर्गो के प्रति उदासीन हमारी सरकार
जन्मदर के साथ-साथ मृत्युदर में गिरावट के चलते दुनिया की आबादी में बुज़ुर्गों की आबादी क्ा अनुपात बढ़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर चर्चा हुई और इस सम्बन्ध में सन् 2012 के अंत में एक प्रस्ताव संयुक्त संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पारित किया, जिसमें बुज़ुर्गों के अधिकारो और उनकी गरिमा की रक्षा के लिए व्यापक और समग्र अंतरराष्ट्रीय कानूनी उपायों को बढ़ावा देने की बात कही गयी है. गौरतलब है कि इस प्रस्ताव के पक्ष में 54 देशों ने वोट दिया, 5 देशों ने विरोध में मत दिया, भारत समेत 118 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया और 16 देश से अनुपस्थित रहे. बुजुर्गों के अधिकारों और उनकी गरिमा की रक्षा के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय कानूनी उपायों को लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की पहल के प्रति भारत सरकार उदासीन क्यों रही, यह समझना मुश्किल है. क्यों भारत सरकार ने अपने अनिर्णय का परिचय दिया. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे छोटे देशों ने भी प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया. क्या हमारी सरकार सिर्फ़ इसलिए अनिर्णय की स्थिति में रही क्योंकि अमेरिका प्रस्ताव के पक्ष में नहीं था और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और चीन जैसे देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
बुजुर्गों के मसलों पर सरकार की उदासीनता वाकई चिन्ता की बात है. दु:ख इस बात का है कि समाज कल्याण से जुड़े मंत्रालयों में प्राय: पिटे हुए नौकरशाह बैठें होते हैं, जो ना तो समय पर निर्देश जारी करते हैं और ना ही बुजुर्गों के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं.
बुजुर्गों की आबादी
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नमक संगठन के अनुमानों के अनुसार -
- वर्तमान में केवल जापान ही एक ऐसा देश है जहाँ बुजुर्गों की आबादी 30 प्रतिशत है.
- वर्ष 2050 तक 64 देशों में बुजुर्गों की आबादी 30 प्रतिशत हो जायेगी.
- वर्ष 2050 तक दुनियान में बुजुर्गों की अस्सी प्रतिशत आबादी विकासशील देशों में बसी होगी.
- भारत में 2011 में बुजुर्गों की आबादी 10 करोड थी, जो 2050 में 32 करोड़ से ज्यादा हो जाने का अनुमान है.
- भारत में बुजुर्गों की मौजूदा आबादी में महिलाओं का अनुपात ज्यादा है.
- भारत में बुजुर्गों की एक तिहाई आबादी अकेले रहती है.
- भारत में क़रीब 90 प्रतिशत बुजुर्गों को अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई-न-कोई कम करना पड़ता है.
- भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अध्ययन के मुताबिक 25 प्रतिशत बुजुर्ग अवसाद से. एक तिहाई गठिया रोग से, 20 प्रतिशत बुजुर्ग कम सुनने की व्याधि से पीड़ित ठाईं. शहरों में आधे और गाँवों में एक तिहाई बुजुर्ग उच्च रक्तचाप से पीड़ित थें. गाँवों में 10 प्रतिशत और शहरों में 40 प्रतिशत बुजुर्ग मधुमेह से पीड़ित थे.
बुजुर्गों को सरकारी पेंशन - सरकारी खानापूर्ति
भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय गरीब वृद्ध लोगों को 200 से 500 रुपये के बीच मासिक पेंशन देता है, जिसे सरकारी खानापूर्ति ही कहा जां सकता है.
क्या किया जाना चाहिए?
- गरीब वृद्ध व्यक्तियों की सरकारी पेंशन राशि को बढ़ाया जाना कहाहिये.
- बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत किया जाना चाहिये.
- 80 प्रतिशत बुजुर्ग अपने कानूनी अधिकारों को नहीं जानते हैं, अत: जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.
- सरकार को जेलों में बंद बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाने चाहिये.
- सरकार को बुजुर्गों के प्रति अपनी उदासीनता को खत्म करना चाहिये.
- केशव राम सिंघल
No comments:
Post a Comment